
आमतौर पर हमारी धरती पर हर 18 महीने पर किसी ना किसी हिस्से में सूर्यग्रहण होता रहता है। लेकिन एक ही स्थान पर दुबारा उसी प्रकार का सूर्यग्रहण 375 सालों बाद दिखता है।
ब्रिटेन और यूरोप में स्थानीय नागरिकों के अलावा दुनिया भर से वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और सैलानियों ने सूर्यग्रहण का नजारा देखा। आम लोग सूर्यग्रहण का जहां उत्सव की तरह आनंद ले रहे थे, वहीं वैज्ञानिक अपने शोध में डूबे थे।
वैज्ञानिक इस सूर्यग्रहण का बड़ी बारीकी से आकलन कर रहे है। क्योंकि सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य से जुड़े कई आंकड़े इकट्ठा किए जा सकते हैं। सामान्य तौर पर सूर्य से निकलने वाला प्रकाश इतना तेज होता है कि उसका बारीकी से अध्ययन करना मुश्किल है।
मलार्ड स्पेस साइंस लेबोरेटरी के सोलर साइंटिस्ट डॉ. लूसी ग्रीन का कहना है कि वैज्ञानिकों का मुख्य जोर यह जानने पर है कि सूर्य का वातावरण इतना ज्यादा गर्म क्यों है। हालांकि अब तक मिली जानकारी के अनुसार माना जाता है कि यह सूर्य के वातावरण के चुंबकीय क्षेत्र से पैदा होता है, लेकिन अभी इस संबंध में सटीक जानकारी अपेक्षित है।
एब्रेसविथ यूनिवर्सिटी के फिजिक्स साइंटिस्ट डॉ. हो मॉगर्न ने कहा, ‘हमने इस सूर्यग्रहण पर कई सारे विशेष टेलीस्कोप को केंद्रित किया है ताकि अलग-अलग बेवलेंथ पर आनेवाली सूर्य की किरणों का विश्लेषण किया जा सके। इससे हमें रहस्यमयी सोलर कोरोना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। ‘
रदरफोर्ड एपलटन लेबोरेटरी के स्पेस साइंस विभाग के प्रमुख प्रो. रिचर्ड हैरिसन के मुताबिक यूं तो अंतरिक्ष में हम टेलीस्कोप से हम अंतरिक्ष का अध्ययन करते रहते हैं। लेकिन यह बड़ा मौका है जब हम धरती से सूर्य का अध्ययन कर पाएंगे। यहां हम उन बड़े उपकरणों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जिसे अंतरिक्ष में ले जाना संभव नहीं है।
इसके अलावा आज भारत में दिन और रात दोनों समान अवधि की होगी। साल में ऐसा केवल दो बार होता है, जब दिन और रात बराबर होते है।
इस बार 20 मार्च को तीन खगोलिय परिघटनाएं एक साथ घटित हो रही है। पहला पूर्ण सूर्यग्रहण, दूसरा पूर्ण चंद्रमा
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