आगरालीक्स …आगरा के वरिष्ठ सर्जन, दुनिया भर के सर्जन को असोपा टेक्निक देने वाले डॉ. एचएस असोपा का निधन हो गया। असोपा हॉस्पिटल खोलकर मरीजों को सस्ती सर्जरी की सुविधा उपलब्ध कराने वाले प्रो. एचएस असोपा 91 वर्ष के थे।
सात जुलाई 1932 में जन्मे प्रो. हरि शंकर असोपा, जिन्हें प्रो. एचएस असोपा के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है, एसएन मेडिकल कॉलेज , आगरा से एमबीबीएस में टॉप किया। एसएन और मेडिकल कॉलेज झांसी में प्रोफेसर रहे।
असोपा टेक्निक के नाम से दुनिया भर में मिली पहचान
प्रो. एचएस असोपा ने जिन बच्चों का पेशाब का रास्ता ठीक से विकसित नहीं होता था उन बच्चों की सर्जरी जटिल थी, कई सर्जरी करने के बाद भी रिजल्ट अच्छे नहीं आते थे। प्रो. एचएस असोपा ने असोपा टेक्निक दी, जिससे बच्चों की सर्जरी की जाने लगी। इससे मेडिकल छात्रों के कोर्स में भी शामिल किया गया।
डॉ. बीसी राय नेशनल अवार्ड सहित कई अवार्ड से सम्मानित
प्रो. एचएस असोपा को एसोसिएशन आफ सर्जन्स आफ इंडिया द्वारा डॉ. बीसी रॉय नेशनल अवार्ड, कर्नल पी आरेशन 1991 फेलोशिप के साथ कई अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया। प्रो. एचएस असोपा के बिना सर्जरी की कांफ्रेंस पूरी नहीं होती थी।
कल होगा अंतिम संस्कार
डॉ. एचएस असोपा के बड़े बेटे रवि असोपा मेलबोर्न आस्ट्रेलिया में रहते हैं, दूसरे बेटे जयोति असोपा और उनकी पत्नी पुनीता असोपा, उनके साथ रहते हैं। जबकि बेटी अर्चना न्यूयार्क अमेरिका में हैं। बेटे और बेटी के आने पर बुधवार को डॉ. एचएस असोपा का अंतिम संस्कार सुबह नौ बजे विद्युत शवदाह गृह ताजगंज में होगा।।
डॉक्टरों की मरीज के पेट में छोड़े गए सबसे ज्यादा गॉज निकाले
करीब 20 साल पहले अक्सर आपरेशन के दौरान डॉक्टर मरीज के पेट में गॉज यानी रूई छोड़ देते थे, इससे इन्फेक्शन होने लगता है। इस तरह के मामले डॉ. एचएस असोपा के पास पहुंचते थे। वे गॉज निकालने के लिए पेट में चीरा लगाने के बाद एक हाथ में नया गॉज लेते थे और गॉज से पेट के अंदर की सफाई करते समय जो गॉज पहले से छूट गया था उसे निकाल लेते थे किसी को पता तक नहीं चलता था। सबसे ज्यादा गॉज उन्होंने ही निकाले।
स्कूटर से मदद के लिए पहुंच जाते थे अस्पताल
मरीज की सर्जरी करते समय परेशानी होने पर सर्जन उन्हें फोन करते थे, डॉ. असोपा कहते थे कि अभी आता हूं। हॉस्पिटल ऐसी जगह पर होता था जहां कार नहीं जा सकती थी वे वहां अपने कंपाउंडर के साथ स्कूटर से पहुंच जाते थे। केस करने में मदद करते थे। सर्जरी के दौरान मरीज की मौत होने पर तीमारदारों को समझाते थे, कहते थे कि मैं आपरेशन करता तो भी इस तरह की समस्या हो सकती थी। लिखित में तीमारदार से खिलवाते थे कि वे कोई कार्रवाई नहीं करना चाहते थे, इसके बाद डॉक्टर से कहते थे कि बेटा मेरी एक बात मानो तो इस मरीज का बिल तीमारदार को मत देना। कोई समस्या हो तो बिल मैं दे दुंगा।