आगरालीक्स…(9 October 2021 Agra News) आगरा के मनकामेश्वर मंदिर में चल रही रामलीला के तीसरे दिन हुआ सीता स्वयंवर. लक्ष्मण—परशुराम के संवाद प्रसंग के मंचन पर बजीं तालियां
नाथ संभूधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
तीसरे दिन इन लीलाओं का हुआ मंचन
श्री मन:कामेश्वर मंदिर में हो रही श्री रामलीला के तीसरे दिन प्रभु श्रीराम लक्ष्मण जी का मिथिला नगर परिभ्रमण, पुष्पवाटिका में राम-सीता मिलन, सीता स्वयंवर एवं लक्ष्मण-परशुराम संवाद प्रसंग का मंचन किया गया। जनकपुर के राजदरबार में सीता स्वयंवर के लिए आए राजाओं का शिव धनुष तोड़ने का बार-बार असफल प्रयास और परशुराम-लक्ष्मण संवाद ने दर्शकों को रोमांचित कर तालियां बजाने को मजबूर कर दिया। कलाकारों ने अपने अभिनय से इसे और जीवंत बना दिया। तीसरे दिन मंचन की शुरुआत दोनों राजकुमारों संग ऋषि विश्वामित्र जनकपुर पहुंचने से होती है। राजा जनक उनका स्वागत करते हैं। राम-लक्ष्मण गुरू की आज्ञा पाकर जनकपुर घूमने निकलते हैं। पुष्पवाटिका में उनकी भेंट सीता से होती है। अगले दृश्य में सीता स्वयंवर के दौरान राज दरबार में देश-विदेश के राजा उपस्थित हैं, लेकिन कोई भी शिव धनुष को हिला तक नहीं पाता।
श्रीराम तोड़ते हैं धनुष
राजा जनक कहते हैं कि लज्जा करो-लज्जा करो, ये पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है। इसके बाद गुरु की आज्ञा पाकर श्रीराम धनुष को तोड़ देते हैं और मंगल गीतों के बीच हर्षित सीता उनके गले में वरमाला डालती हैं। धनुष खंडित होने की गूंज से क्रोधित परशुराम सभा में पहुंचते हैं और धनुष तोड़ने वाले का नाम पूछते हैं।
खरभरु देखि बिकल पुर नारीं। सब मिलि देहिं महीपन्ह गारीं॥
खलबली देखकर जनकपुरी की स्त्रियाँ व्याकुल हो गईं और सब मिलकर राजाओं को गालियाँ देने लगीं।
मन पछिताति सीय महतारी। बिधि अब सँवरी बात बिगारी॥
भृगुपति कर सुभाउ सुनि सीता। अरध निमेष कलप सम बीता॥
सीता की माता मन में पछता रही हैं कि हाय! विधाता ने अब बनी-बनाई बात बिगाड़ दी। परशुराम का स्वभाव सुनकर सीता को आधा क्षण भी कल्प के समान बीतने लगा।
लक्ष्मण—परशुराम संवाद का हुआ मंचन
इसके बाद लक्ष्मण और परशुराम का संवाद होता है। मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण मुसकराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले –
बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥
एहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
हे गोसाईं! लड़कपन में हमने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ डालीं। किंतु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इसी धनुष पर इतनी ममता किस कारण से है? यह सुनकर भृगुवंश की ध्वजा स्वरूप परशुराम कुपित होकर कहने लगे।
रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम तिपुरारि धनु बिदित सकल संसार॥
अरे राजपुत्र! काल के वश होने से तुझे बोलने में कुछ भी होश नहीं है। सारे संसार में विख्यात शिव का यह धनुष क्या धनुही के समान है?॥
लखन कहा हँसि हमरें जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें॥
लक्ष्मण ने हँसकर कहा – हे देव! सुनिए, हमारे जान में तो सभी धनुष एक-से ही हैं। पुराने धनुष के तोड़ने में क्या हानि-लाभ! राम ने तो इसे नवीन के धोखे से देखा था।
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
फिर यह तो छूते ही टूट गया, इसमें रघुनाथ का भी कोई दोष नहीं है। मुनि! आप बिना ही कारण किसलिए क्रोध करते हैं? परशुराम अपने फरसे की ओर देखकर बोले – अरे दुष्ट! तूने मेरा स्वभाव नहीं सुना।
नाथ संभूधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा। ।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।
हे; नाथ शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई एक दास होगा अर्थात मैं आपका दास हूं।
परशुराम अपने बल और क्रोध के वशीभूत होकर श्रीराम के विष्णु का अवतार होने की बात को भी नहीं समझ पाते हैं।
अंत में जब उन्हें श्रीराम के विष्णु अवतार होने की जानकारी लगती है तो वे भगवान विष्णु का प्रसिद्ध धनुष श्रीराम को सौंपते हैं और लक्ष्मण को जीवन के कुछ गूढ़ रहस्यों को समझाते आशीर्वाद देते हुए जनकपुर से प्रस्थान कर जाते हैं।
अयोध्या भेजा गया विवाह का आमंत्रण
अंत में दशरथ जी को लग्न पत्रिका व विवाह आमंत्रण भेजा जाता है… चारों भाइयों सहित सीता जी को मेहंदी लगना व मंगल गान प्रारंभ हो जाते है। आज लीला विराम के पश्चात नेशनल चैम्बर्स आफ कामर्स के अनिल वर्मा (पूर्व अध्यक्ष), प्रदीप वार्ष्णय, राकेश चौहान, बंटी ग्रोवर, भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा महानगर अध्यक्ष उपमा गुप्ता,सुनीता मेहता द्वारा महंत श्री योगेश पुरी जी के साथ आरती की गई। प्रसाद वितरण में कंचन गुप्ता, दीप्ति गर्ग, बबिता अग्रवाल, थानेश्वर तिवारी, अमर गुप्ता, निशांत सिकरवार, कविता पांडेय, रतिका तिवारी, सपना सिंह,आदि का सहयोग रहा।