
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे
ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे
ज़ख़्म जब भी कोई ज़ेह्न-ओ-दिल पे लगा, ज़िंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
इतनी यादों के भटके हुए कारवाँ, दिल के ज़ख़्मों के दर खटखटाते रहे
सख़्त हालात के तेज़ तूफानों में , घिर गया था हमारा जुनूने-वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे
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राही मासूम रज़ा का जन्म एक सितंबर 1927 को गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी, लेकिन इंटरमीडियट करने के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से एमए करने के बाद उर्दू में `तिलिस्म-ए-होशरुबा’ पर पीएच.डी. की। पीएच.डी. करने के बाद राही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के उर्दू विभाग में प्राध्यापक हो गये और अलीगढ़ के ही एक मुहल्ले बदरबाग में रहने लगे।
यहीं रहते हुए राही ने `आधा गांव’, `दिल एक सादा कागज’, `ओस की बूंद’,`हिम्मत जौनपुरी’ उपन्यास व 1965 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए वीर अब्दुल हमीद की जीवनी `छोटे आदमी की बड़ी कहानी’लिखी. उनकी ये सभी कृतियां हिंदी में थीं. इससे पहले वह उर्दू में एक महाकाव्य `1857′ तथा छोटी-बड़ी उर्दू नज़्में व गजलें लिखे चुके थे।
आधा गाँव, नीम का पेड़, कटरा बी आर्ज़ू, टोपी शुक्ला, ओस की बूंद और सीन उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।
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