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Agra News : Role Of Nationalism in India’s Freedom Struggle discuss in Agra College #agra
आगरालीक्स.... आगरा में कहा कि राष्ट्रवाद आम भारतीयों की धमनियों में विद्यमान रहा है, जो प्राचीनतम ग्रंथों में भी देखा जा सकता है।

“राष्ट्रवाद के पीछे एक धर्म और एक भाषा मुख्य आधार होते हैं। राष्ट्रवाद धर्म से ऊपर है वहीं धर्म से राष्ट्रवाद को बल मिलता है”। उक्त विचार हैं प्रो अतुल कुमार सिन्हा के। वह आगरा कॉलेज, आगरा के इतिहास विभाग द्वारा गंगाधर शास्त्री भवन में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बीज वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। संगोष्ठी का विषय था “भारत के स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रवाद की भूमिका”।
प्रो सिन्हा ने आगे बोलते हुए कहा कि राष्ट्रवाद को लेकर यह भ्रामक अवधारणा रही है कि भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना और संकल्पना का अभाव था। हमारे यहां जन्मभूमि को स्वर्ग से भी ऊपर रखा गया है। यह हमारी राष्ट्रीयता की प्रथम पहचान है। भौगोलिक और राजनीतिक रूप से भिन्न होते हुए भी प्राचीन काल से इस अवधारणा ने भारत को एकता के सूत्र में बांध रखा था। गांधीजी ने स्वराज व स्वदेशी आदि के माध्यम से भारतीय राजनीति में प्रवेश कर जनसाधारण को जोड़ते हुए राष्ट्रवाद की अलख जगाई। यह राष्ट्रीय चेतना व राष्ट्रवाद की भावना ही थी। नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, चौरीचौरा इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
मुख्य अतिथि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो एके दुबे ने राष्ट्रवाद के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद आम भारतीयों की धमनियों में विद्यमान रहा है, जो प्राचीनतम ग्रंथों में भी देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भारत में राष्ट्रवाद को चुनौती दी कि भारत में राष्ट्रवाद नाम की कोई चीज नहीं है। अंग्रेजों ने भारतीय प्रतीक चिन्हों को चुनौती दी। परिणाम स्वरूप राष्ट्रवाद का भारतीयों में खुलकर प्रस्फुटन हुआ। राष्ट्रवाद के कारण ही भारतीय संस्कृति अनेकों प्रहारों के उपरांत भी पुष्पित और पल्लवित होती रही है।