आगरालीक्स…चैत्र नवरात्रि में कल दो तिथि एक साथ. मां के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी और तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की होगी पूजा…जानिए इससे संबंधित पूरी जानकारी और पूजा विधि
चैत्र नवरात्र पर इस बार सोमवार को दो तिथि द्वितीया और तृतीया एक साथ पड़ रही हैं. ऐसे में 31 मार्च को माता के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी और तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी.
मां ब्रह्मचारिणी
मां का चोला (सफेद) भोग. मिश्री, चीनी ,पंचामृत ,शुभ रंग(हरा) लौंग इलायची सुपारी सात पान के पत्ते, मिश्री इन सब को दान करने से पूजा करने वाले की आयु बढ़ती है।
चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया सोमवार अश्वनी नक्षत्र , वैधृति योग और कौलव करण के शुभ संयोग मै 31 मार्च 2025 को मां दुर्गा की दूसरी शक्ति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ही मां ब्रह्मचारिणी है। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली ब्रह्मा जी की शक्ति होने से मां का यह स्वरूप ब्रह्मचारिणी नाम से लोक प्रसिद्ध हुआ। इनका उद्भव ब्रह्मा जी के कमंडल से माना जाता है। ब्रह्मा जी सृष्टि के सृजक हैं। माता ब्रह्मचारिणी उनकी शक्ति हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्गमय एवं अत्यंत भव्य है। जब मानस पुत्रों से सृष्टि का विस्तार नहीं हो सका तो ब्रह्मा जी की इसी शक्ति ने सृष्टि का विस्तार किया। इसी कारण स्त्री को सृष्टि का कारक माना गया है। देवी ब्रह्मचारिणी भक्ति ,ज्ञान, वैराग्य और ध्यान की अधिष्ठात्री है। इनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे में रुद्राक्ष की माला है। करमाला स्फटिक और ध्यान योग नवरात्रि की दूसरी अधिष्ठापन शक्ति है। मां दुर्गा के उपासक इस दिन जितना ध्यान करेंगे उतना ही उन्हें श्रेष्ठ फल प्राप्त होगा। नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इन्होंने इसी तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी माता की कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
मंत्र -या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थितानमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यैनमो नमः
तृतीय चंद्रघंटा
मां का चोला (केसरी) शुभ रंग (ग्रे), भोग दूध और उस से बनी चीजें दान करने से मां भगवती खुश होती है और समस्त दुखों का नाश करती है।
मां दुर्गा की तीसरी स्वरूप का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन किया जाता है। इनका यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। माता चंद्रघंटा के सिख पर घंटे के आकार का अर्धचन्द्र और हस्त में घंटा है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। आवाहन, संकल्प और नादके रूप में आराध्य यह है। देवी सरस्वती का रुप है। मां चंद्रघंटा की मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने से भक्तों के कष्टों का निवारण शीघ्र कर देती है। इनका वाहन सिहं है। अतः इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। देवासुर संग्राम में देवी जी ने घंटे की नांद से अनेकानेक असुरो का दमन किया। ऐसा शोर और नांद का ऐसा असर हुआ कि असुर काल के ग्रास बन गए। इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों की प्रेतबाधा आदि से रक्षा करती है। शास्त्रों मे सुर और संगीत दोनों की ही मुद्रा शांत और आत्मा विभोर करने वाली मानी है। सुर और संगीत दोनों को ही वशीकरण का बीज मंत्र समझा गया है। चंद्रघंटा देवी इसी की आराध्य शक्ति है। चंद्रमा शांति का प्रतीक है और घंटा नाद का। मां चंद्रघंटा नाद के साथ शक्ति का संदेश देती है देवी की आराधना में नाद पर विशेष ध्यान दिया गया है। वादन और गायन(गाना) दोनों ही नाद के प्रतीक है। मां चंद्रघंटा के साधक और उपासक जहां भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करते हैं। नवरात्र के तीसरे दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्ट होता है। मां के इस स्वरूप की आराधना के लिए “सिद्ध कुंजिका “स्त्रोत का पाठ मंगल फलदाई माना गया है।
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य परमपूज्य गुरुदेव पंडित ह्रदयरंजन शर्मा अध्यक्ष श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले पुरानी कोतवाली सर्राफा बाजार अलीगढ़ यूपी WhatsApp। नंबर-9756402981,7500048250