पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का ताजमहल और आगरा कनेक्शन
आगरालीक्स.. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहली कविता ताजमहल पर थी, यह कविता में ताजमहल के संगमरमरी हुस्न के साथ कारीगरों का दर्द भी था, खुद पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी ने एक साक्षात्कार में कहा कि मुझे यह बात अभी तक अच्छी तरह से याद है कि मेरे पिताश्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी मेरी अँगुली पकड़कर मुझे आर्य समाज के वार्षिकोत्सव में ले जाते थे। उपदेशकों के सस्वर भजन मुझे अच्छे लगते थे। आर्य विद्वानों के उपदेश मुझे प्रभावित करने लगे थे। भजनों और उपदेशों के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम की बातें भी सुनने को मिलती थी।
क्या यह एक संयोग मात्र था ? क्या इसके पीछे कोई विधान था ? घर में साहित्य प्रेम का वातावरण था। मैंने भी तुकबंदी शुरू कर दी। मुझे याद है कि मेरी पहली कविता ‘ताजमहल’ थी, किंतु ताजमहल पर लिखी गई यह कविता केवल उसके सौंदर्य तक ही सीमित नहीं थी। कविता उन कारीगरों की व्यथा तक पहुंच गई थी, जिन्होंने पसीना बहाकर जीवन खपाकर ताजमहल का निर्माण किया था।
ताजमहल, यह ताजमहल,
कैसा सुंदर अति सुंदरतर।
जब रोया हिंदुस्तान सकल,
तब बन पाया यह ताजमहल।
मैंने विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर से स्नातक की परीक्षा पास की थी। आगे पढ़ने का इरादा जरूर था लेकिन साधनों का अभाव था। ग्वालियर की रियासत मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति दिया करती थी। इनमें दक्षिण से आए क्षत्रिय छात्र अधिक होते थे।
मैंने बी.ए. पास करते-करते अच्छा नाम कमा लिया था। मेरे भाषण शौक से सुने जाते। मेरी कविताएँ भी पसंद की जाती थीं। ग्वालियर रियासत में मेरा नाम भी हो गया था। जब उच्च शिक्षा के छात्रों का चयन होने लगा तो मुझे भी उसमें मौका मिल गया।
ग्वालियर के छात्र आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध होने के कारण कानपुर जाते थे। कानपुर में डी.ए.वी. कॉलेज और सनातन धर्म कॉलेज दोनों का बड़ा नाम था। मैंने डी.ए.वी. कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज का भवन काफी विशाल था। छात्रावास में उसके छात्रों के रहने की व्यवस्था सरलता से हो जाती थी। मैंने छात्रावास में रहने का निश्चय किया।