Kajari Teej fast strengthens the relationship between husband and wife
आगरालीक्स... कजरी तीज 25 अगस्त को है। वैवाहिक जीवन में सुख—समृद्धि का पर्व है। पति—पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए यह व्रत रखा जाता है। जानिए कैसे करें पूजा। बहुत ही महत्वपूर्ण है ये व्रत कज्जली (कजरी, सातुड़ी) तृतीया (तीज) 25 अगस्त बुधवार को है। यह व्रत सुहागन स्त्रियां पति की लंबी आयु, उन्नति के लिए रखती हैं। जिन कन्याओं के विवाह में दिक्कत परेशानी होती है, वे अपने अच्छे सुयोग्य वर के लिए पूजा करती हैं। अलीगढ़ के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित हृदयरंजन शर्मा ने बताया कि अन्य तीज त्योहारों की तरह इस तीज का भी अलग महत्त्व है। यह एक ऐसा त्योहार है, जो शादीशुदा लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। हमारे देश में शादी का बंधन सबसे अटूट माना जाता है। पति—पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए तीज का व्रत रखा जाता है। दूसरी तीज की तरह यह भी हर सुहागन के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन पत्नी अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। कुंआरी लड़की अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत रखती है। पार्वती संग करें शिवजी की पूजा पंडित हृदयरंजन शर्मा ने बताया कि तृतीया तिथि का आरंभ 24 अगस्त को शाम चार बजकर 04 मिनट पर हो रहा है। 25 अगस्त को सूर्योदय से ही तृतीया तिथि होगी, जो सायं चार बजकर 18 मिनट तक है। इसलिए व्रत करने वाले को सुबह से लेकर शाम तक कभी भी देवी पार्वती के संग भगवान शिव की पूजा कर लेनी चाहिए। कजली तीज को पर ये भी किया जाता है इस दिन हर घर में झूला डाला जाता है। महिलाएं इसमें झूल कर अपनी ख़ुशी व्यक्त करती हैं। इस दिन महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ एक जगह इकट्ठी होती हैं और पूरा दिन नाच गाने मस्ती में बिताती हैं। महिलाएं अपने पति के लिए व कुंआरी लड़की अच्छे पति के लिए व्रत रखती हैं। तीज का यह व्रत कजली गानों के बिना अधूरा है। गांव में लोग इन गानों को ढोलक मंजीरे के साथ गाते हैं। इस दिन गेहूं, जौ, चना और चावल के सत्तू में घी मिलाकर तरह तरह के पकवान बनाते हैं। चंद्रोदय के बाद तोड़ें व्रत व्रत शाम को चंद्रोदय के बाद तोड़ते हैं और ये पकवान खाकर ही व्रत तोड़ा जाता है। इसमें विशेषतौर पर गाय की पूजा होती है। इसके अलावा आटे की सात रोटियां बनाकर उस पर गुड़ चना रखकर गाय को खिलाया जाता है। इसके बाद ही व्रत तोड़ते हैं। पूजा सामग्री और विधि सामग्री- कजली तीज के लिए कुमकुम, काजल, मेहंदी, मौली, अगरबत्ती, दीपक, माचिस, चावल, कलश, फल, नीम की एक डाली, दूध, ओढ़नी, सत्तू, घी, तीज व्रत कथा बुक, तीज गीत बुक और कुछ सिक्के आदि पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है। पूजा विधि इस प्रकार है पहले कुछ रेत जमा करें और उससे एक तालाब बनाएं। यह ठीक से बना हुआ होना चाहिए ताकि इसमें डाला गया जल लीक ना हो। अब तालाब के किनारे मध्य में नीम की एक डाली को लगा दीजिये, और इसके ऊपर लाल रंग की ओढ़नी डाल दीजिये। इसके बाद इसके पास गणेश जी और लक्ष्मी जी की प्रतिमा विराजमान कीजिये। अब कलश के ऊपरी सिरे में मौली बांध दीजिये और कलश पर स्वास्तिक बना लीजिये। कलश में कुमकुम और चावल के साथ सत्तू और गुड़ भी चढ़ाइए, साथ ही एक सिक्का भी चढ़ा दीजिये। इसी तरह गणेश जी और लक्ष्मी जी को भी कुमकुम, चावल, सत्तू, गुड़, सिक्का और फल अर्पित कीजिये। इसी तरह तीज पूजा अर्थात नीम की पूजा कीजिये, और सत्तू तीज माता को अर्पित कीजिये। इसके बाद दूध और पानी तालाब में डालिए। विवाहित महिलाओं को तालाब के पास कुमकुम, मेंहदी और कजल के सात राउंड डॉट्स देना पड़ता है। साथ ही अविवाहित स्त्रियों को यह 16 बार देना होता है। कथा के बाद देखें प्रतिबिंब व्रत कथा शुरू करने से पहले अगरबत्ती और दीपक जला लीजिये। व्रत कथा को पूरा करने के बाद महिलाओं को तालाब में सभी चीजों जैसे सत्तू, फल, सिक्के और ओढ़नी का प्रतिबिंब देखने की जरूरत होती है, जोकि तीज माता को चढ़ाया गया था। इसके साथ ही वे उस तालाब में दीपक और अपने गहनों का भी प्रतिबिंब देखती हैं। व्रत कथा खत्म हो जाने के बाद के कजरी गीत गाती हैं। सभी माता तीज से प्रार्थना करती है। अब वे खड़े होकर तीज माता के चारों ओर तीन बार परिक्रमा करती हैं।