UP elections: Small parties will have a big role
लखनऊलीक्स(30th September 2021)… उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में छोटे दलों की होगी बड़ी भूमिका. गोटियां सेट करने में लगे छोटे दल.
यूपी विधानसभा के अगले साल के शुरू में होने वाले चुनावों के लिए राजनैतिक दल अपनी—अपनी गोटियां सेट करने में लगे हैं। एक तरफ भाजपा मजबूती से खड़ी है तो उसके सामने विपक्षी दल बिखरे हुए हैं। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस, सपा, बसपा और रालोद के अलावा दो दर्जन से ज्यादा छोटे दल हैं, जो चुनावी गठबंधन में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
शिवपाल यादव के घर हुई बैठक
बुधवार को यहां प्रसपा नेता शिवपाल यादव के निवास पर असदुद्दीन ओवैसी, ओमप्रकाश राजभर और चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण के बीच हुई बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अब यह चारों नेता अपने—अपने दलों का गठबंधन कर भाजपा को कितनी बड़ी चुनौती पेश कर पाएंगे, ये तो भविष्य में ही पता चलेगा। लेकिन इस बैठक ने सपा नेतृत्व को निश्चित रूप से दबाव में डाल दिया है।
भाजपा का गठबंधन
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली भाजपा पहले ही निषाद पार्टी और अपना दल के साथ चुनावी गठबंधन की घोषणा कर चुकी है। भाजपा पहले से ही मजबूत पार्टी है और उसका इस बार 400 सीटें जीतने का दावा और इरादा है। उसके इरादों को दोनों सहयोगी दल कितना लाभ देंगे, यह भी चुनावों के परिणाम सामने आने पर ही पता चलेगा।
कांग्रेस के साथ कोई नहीं
उत्तर प्रदेश के सियासी हलकों में विभिन्न छोटी ही पार्टियों के साथ गठबंधन करने में जुटी है लेकिन कांग्रेस के साथ कोई भी दल जाने को तैयार नहीं है। लगता है कि कांग्रेस को इस बार अकेले ही चुनावी रण में उतरना होगा। बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव सपा और कांग्रेस ने मिलकर लड़ा था, जिसका दोनों ही पार्टियों को भारी खामियाजा भुगतना पड़ा था। इसीलिए न तो कांग्रेस किसी अन्य दल से गठबंधन करना चाहती है न कोई दल कांग्रेस के साथ खड़ा होना चाहता है।
सपा प्रसपा में तालमेल
सपा नेता मुलायम सिंह के परिवार के दो अहम सदस्यों के बीच अभी तक एका नहीं हो सका है। मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव 2017 के चुनाव के दौरान ही अखिलेश यादव से तनातनी के चलते सपा से अलग होकर अपनी पार्टी प्रसपा बना चुके हैं। हालांकि दोनों के अलग—अलग चुनाव लड़ने का खामियाजा दोनों को ही भुगतना पड़ा। अब भी दोनों के बीच कोई कायदे का समझौता नहीं हुआ है। शिवपाल यादव पहले भी कह चुके हैं कि 11 अक्टूबर तक अखिलेश यादव गठबंधन पर अपनी राय स्पष्ट करें अन्यथा वह अलग सियासी राह पकड़ लेंगे। शिवपाल ने 12 अक्टूबर से मथुरा और वृंदावन में चुनावी शंखनाद की भी घोषणा कर चुके हैं।