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Agra News: Gangaur festival tomorrow on Friday. Know what is its importance, method of worship, story and song…#agranews

आगरालीक्स…गणगौर त्योहार कल शुक्रवार को. जानिए क्या है इसका महत्व, पूजा विधि, कथा और गीत….

भारत रंगों भरा देश है . उसमे रंग भरते है उसके , भिन्न-भिन्न राज्य और उनकी संस्कृति . हर राज्य की संस्कृति झलकती है उसकी, वेश-भूषा से वहा के रित-रिवाजों से और वहा के त्यौहारों से . हर राज्य की अपनी, एक खासियत होती है जिनमे, त्यौहार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत का एक राज्य राजस्थान, जहाँ मारवाड़ीयों की नगरी भी है और, गणगौर मारवाड़ीयों का बहुत बड़ा त्यौहार है जो, बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है ना केवल, राजस्थान बल्कि हर वो प्रदेश जहा मारवाड़ी रहते है, इस त्यौहार को पूरे रीतिरिवाजों से मनाते है . गणगौर दो तरह से मनाया जाता है . जिस तरह मारवाड़ी लोग इसे मनाते है ठीक, उसी तरह मध्यप्रदेश मे, निमाड़ी लोग भी इसे उतने ही उत्साह से मनाते है . त्यौहार एक है परन्तु, दोनों के पूजा के तरीके अलग-अलग है . जहा मारवाड़ी लोग सोलह दिन की पूजा करते है वही, निमाड़ी लोग मुख्य रूप से तीन दिन की गणगौर मनाते है। इस वर्ष 2023 में गणगौर का त्यौहार शुक्रवार 24 मार्च को मनाया जाएगा।

पंडित हृदय रंजन शर्मा

गणगौर पूजन का महत्व
गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री के द्वारा मनाया जाता है . इसमें कुवारी कन्या से लेकर, विवाहित स्त्री दोनों ही, पूरी विधी-विधान से गणगौर जिसमे, भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करती है। इस पूजन का महत्व कुवारी कन्या के लिये , अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि,विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु के लिये होता है . जिसमे कुवारी कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और, विवाहित स्त्री सोलह श्रंगार करके पुरे, सोलह दिन विधी-विधान से पूजन करती है।

🌟पूजन सामग्री
जिस तरह, इस पूजन का बहुत महत्व है उसी तरह, पूजा सामग्री का भी पूर्ण होना आवश्यक है।

🌻पूजा सामग्री
लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा
ताम्बे का कलश
काली मिट्टी/होली की राख़
दो मिट्टी के कुंडे/गमले
मिट्टी का दीपक
कुमकुम, चावल, हल्दी, मेहन्दी, गुलाल, अबीर, काजल
घी
फूल,दुब,आम के पत्ते
पानी से भरा कलश
पान के पत्ते
नारियल
सुपारी
गणगौर के कपडे
गेहू
बॉस की टोकनी
चुनरी का कपड़ा

🌷उद्यापन की सामग्री
उपरोक्त सभी सामग्री, उद्यापन मे भी लगती है परन्तु, उसके अलावा भी कुछ सामग्री है जोकि, आखरी दिन उद्यापन मे आवश्यक होती है .
सीरा (हलवा)
पूड़ी
गेहू
आटे के गुने (फल)
साड़ी
सुहाग या सोलह श्रंगार का समान आदि।

गणगौर पूजन की विधि
मारवाड़ी स्त्रियाँ सोलह दिन की गणगौर पूजती है . जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है . यह गणगौर अकेली नही, जोड़े के साथ पूजी जाती है . अपने साथ अन्य सोलह कुवारी कन्याओ को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है . सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाती है अंत मे, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा अर्थात् जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा प्रारंभ होती है . ऐसी स्त्री जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है।

गणगौर
सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साथिया बना कर, पूजन किया जाता है . जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है . ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है।अब चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है .
फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता . उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है।
दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है . उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है . तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है . उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है।
ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है. अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है . उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है . गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के , मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है . इन सभी का पूजन होता है , प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है।

गणगौर माता की कहानी
राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब . राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये . एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया . छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे . छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे , सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे . सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया . माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो . बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी , माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे . ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली , बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा . माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले . माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला , चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली , और छीटो दियो ,ओबरी खुल गई . उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है ,सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है . है गणगौर माता , जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना . कहता ने , सुनता ने , सारे परिवार ने।

गणगौर पूजते समय का गीत
यह गीत शुरू मे एक बार बोला जाता है और गणगौर पूजना प्रारम्भ किया जाता है

प्रारंभ का गीत

गोर रे गणगौर माता खोल ये किवाड़ी
बाहर उबी थारी पूजन वाली,
पूजो ये पुजारन माता कायर मांगू
अन्न मांगू धन मांगू लाज मांगू लक्ष्मी मांगू
राई सी भोजाई मंगू ।
कान कुवर सो बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू।
उसके बाद सोलह बार गणगौर के गीत से गणगौर पूजी जाती है।

सोलह बार पूजन का गीत

गौर-गौर गणपति ईसर पूजे,
पार्वती का आला टीला,
गोर का सोना का टीला .
टीला दे टमका दे, राजा रानी बरत करे .
करता करता, आस आयो मास
आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो,
बीरों ले गटकायों .
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा .
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे .
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे,
किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे,
गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो,
आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे
एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,
तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह।
सोलह बार पूरी गणगौर पूजने के बाद पाटे के गीत गाते है

पाटा धोने का गीत

पाटो धोय पाटो धोय,
बीरा की बहन पाटो धो,
पाटो ऊपर पीलो पान,
म्हे जास्या बीरा की जान .
जान जास्या, पान जास्या,
बीरा ने परवान जास्या
अली गली मे, साप जाये,
भाभी तेरो बाप जाये .
अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये .
दूध मे डोरों , म्हारों भाई गोरो
खाट पे खाजा , म्हारों भाई राजा
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा
थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा
ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी ..
ओडो खोडो का गीत –
ओडो छे खोडो छे घुघराए , रानियारे माथे मोर .
ईसरदास जी, गोरा छे घुघराए रानियारे माथे मोर ..
(इसी तरह अपने घर वालो के नाम लेना है )

गणपति जी की कहानी
एक मेढ़क था, और एक मेंढकी थी . दोनों जनसरोवर की पाल पर रहते थे . मेंढक दिन भर टर्र टर्र करता रहता था . इसलिए मेंढकी को, गुस्सा आता और मेंढक से बोलती, दिन भर टू टर्र टर्र क्यों करता है . जे विनायक, जे विनायक करा कर . एक दिन राजा की दासी आई, और दोनों जना को बर्तन मे, डालकर ले गई और, चूल्हे पर चढ़ा दिया . अब दोनों खदबद खदबद सीजने लगे, तब मेंढक बोला मेढ़की, अब हम मार जायेंगे . मेंढकी गुस्से मे, बोली की मरया मे तो पहले ही थाने बोली कि ,दिन भर टर्र टर्र करना छोड़ दे . मेढको बोल्यो अपना उपर संकट आयो, अब तेरे विनायक जी को, सुमर नही किया तो, अपन दोनों मर जायेंगे . मेढकी ने जैसे ही सटक विनायक ,सटक विनायक का सुमिरन किया इतना मे, डंडो टूटयों हांड़ी फुट गई . मेढक व मेढकी को, संकट टूटयों दोनों जन ख़ुशी ख़ुशी सरोवर की, पाल पर चले गये . हे विनायकजी महाराज, जैसे मेढ़क मेढ़की का संकट मिटा वैसे सबका संकट मिटे . अधूरी हो तो, पूरी कर जो,पूरी हो तो मान राखजो।

गणगौर अरग के गीत
पूजन के बाद, सूर्यनारायण भगवान को जल चढा कर गीत गाया जाता है।

अरग का गीत

अलखल-अलखल नदिया बहे छे
यो पानी कहा जायेगो
आधा ईसर न्हायेगो
सात की सुई पचास का धागा
सीदे रे दरजी का बेटा
ईसरजी का बागा
सिमता सिमता दस दिन लग्या
ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,
बेटो अरदा तानु परदा
हरिया गोबर की गोली देसु
मोतिया चौक पुरासू
एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,
तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह .

गणगौर को पानी पिलाने का गीत
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सप्तमी से, गणगौर आने के बाद प्रतिदिन तीज तक (अमावस्या छोड़ कर) शाम मे, गणगौर घुमाने ले जाते है . पानी पिलाते और गीत गाते हुए, मुहावरे व दोहे सुनाते है।

पानी पिलाने का गीत

म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो ..
(इसमें परिवार के पुरुषो के नाम क्रमशः लेते जायेंगे)

गणगौर उद्यापन की विधी
सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है .

विधि
आखरी दिन गुने(फल) सीरा , पूड़ी, गेहू गणगौर को चढ़ाये जाते है .
आठ गुने चढा कर चार वापस लिये जाते है।
गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है।
दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है ,जिसमे पपड़ी या गुने(फल) रखे जाते है . उसमे सोलह फल खुद के,सोलह फल भाई के,सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है .
चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे . पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है।
शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है।
गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है।

गणगौर के बहुत से, गीत और दोहे होते है . हर जगह अपनी परम्परानुसार, पूजन और गीत जाये जाते है। जो प्रचलित है उसे, हम अपने अनुसार डाल रहे है। निमाड़ी गणगौर सिर्फ तीन दिन ही पूजी जाती है . जबकि राजस्थान मे, मारवाड़ी गणगौर प्रचलित है जो, झाकियों के साथ निकलती है ।

प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य परम पूज्य गुरुदेव पंडित हृदय रंजन शर्मा अध्यक्ष श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार पुरानी कोतवाली सर्राफा बाजार अलीगढ़ यूपी व्हाट्सएप नंबर-9756402981,7500048250

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