Agra News: Kartik month starting from 18th October. Know the special things of this month…#agranews
आगरालीक्स…18 अक्टूबर से शुरू हो रहा कार्तिक माह. भगवान नारायण के जागने का महीना, त्यौहारों का महीना, दीपदान का महीना….जानिए इस महीने की खास बातें
सृष्टि के मूल सूर्य की किरणों का उतरायण और दक्षिणायन में होना जगत का आधार है। भगवान नारायण के शयन और प्रबोधन से चातुर्मास्य का प्रारम्भ और समापन होता है। उतरायण को देवकाल और दक्षिणायन को आसुरिकाल माना जाता है। दक्षिणायन में सत्गुणों के क्षरण से बचने और बचाने के लिए हमारे शास्त्रों में व्रत और तप का विधान है। सूर्य का कर्क राशि पर आगमन दक्षिणायन का प्रारम्भ माना जाता है और कातिक मास इस अवधि में ही होता है। पुराण आदि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। यूँ तो हर मास का अलग अलग महत्व है परन्तु व्रत, तप की दृष्टि से कार्तिक मास की महता अधिक है। शास्त्रों में भगवान विष्णु और विष्णु तीर्थ के ही समान कर्तिक् मास को श्रेष्ट और दुर्लभ कहा गया है। शास्त्रों में ये मास परम कल्याणकारी कहा गया है।
सूर्य भगवान जब तुला राशि पर आते है तो कार्तिक मास का प्रारम्भ होता है। इस मास का माहत्म्य पद्मपुराण तथा स्कन्दपुराण में विस्तार पूर्वक मिलता है। कार्तिक मास में स्त्रियां ब्रम्ह महूर्त में स्नान कर भगवान कृष्ण और राधा की पूजा करती है। कलियुग में कार्तिक मास को मोक्ष के साधन के रूप में दर्शाया गया है। इस मास को धर्म,अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला बताया गया है। नारायण भगवान ने स्वयम इसे ब्रम्हा को, ब्रम्हा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण सम्पन्न माहात्म्य के संदर्भ में बताया है।
इस संसार में प्रतेयक मनुष्य सुख शांति और परम आनंद की कामना करता है परन्तु प्रश्न यह है की दुखों से मुक्ति कैसे मिले? इसके लिए हमारे शास्त्रों में कई प्रकार उपाय बताए गए है परन्तु कार्तिक मास की महिमा अत्यंत उच्च बताई गयी है इस मास में स्नान व्रत लेने वालों को कई सयंम नियमों का पालन करना चहिये तथा श्रद्धा – भक्तिपूर्वक भगवान की आराधना करनी चाहिए।
कार्तिक मास में प्रातकाल किसी नदी तालाब या जैसी सुविधा हो स्नान कर के भगवान की पूजा की जाती है। इस मास में व्रत करने वाली स्त्रियां अक्षय नवमी को आंवला वृक्ष के नीचे भगवान कर्तिक्ये की कथा सुनती है और इसके बाद ब्राह्मण को अन्न, धन दान में दिए जाते हैं। इसके साथ ही कुआरियों और कुआरों को ब्राह्मणों के साथ साथ भोजन कराया जाता है। कार्तिक मास कई अर्थो में अन्य मासों से अधिक महत्व रखता है। इस मास की अमावस को प्रकाश पर्व मनाते है। इस दिन विष्णु प्रिय लक्ष्मी सर्वत्र भ्रमण करती है और हर तरह से धन धान्य से परिपूर्ण करती है। इस मास को रोगों का विनाशक माना गया है। वहीं इसे सद्बुद्धि प्रदान करने वाला, लक्ष्मी को देने वाला तथा मुक्ति प्रदान करने वाला भी बताया गया है।
कार्तिक में दीपदान का महत्व
दीपदान के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है. शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं.विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं। इस प्रकार देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं और अपना कार्यभार संभालते हैं.इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है. व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है
पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार जलाना चाहिए. इस माह में जो व्यक्ति घी या तेल का दीया जलाता है,उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है. मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। पद्मपुराण में यह भी लिखा है कि दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है। इसी माह में हरिबोधिनी एकादशी के अवसर पर भगवान विष्णु के समक्ष कपूर का दीपक जलाने से श्रद्धालु को मोक्ष की प्राप्ति होती है.कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक दीपदान का विशिष्ट महत्व है।
ऎसा माना जाता है कि त्रयोदशी के दीपदान से भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं. व्यक्ति के घर में सुख तथा समृद्धि बढ़ती है। दीपदान की यह परम्परा प्राचीन समय से चली आ रही है, जो आज तक जारी है. प्राचीन समय से ही दीपदान की यह परंपरा मंगलकारी मानी गई है। इसलिए आधुनिक समय में आज भी दीपदान किया जाता है. कार्तिक के इस माह में महिलाएं प्रतिदिन आटे से बने,तांबे और मिट्टी के दीपक को जलाकर दीपदान करती है.दीपदान करने के लिए कई अवसर आते हैं तथा कई पवित्र स्थानों पर यह दान किया जाता है।
कार्तिक का दूसरा प्रमुख कृत्य तुलसी वन पालन है। वैसे तो तुलसी का प्रयोग हर मास में कल्याणकारी होता है किन्तु कार्तिक मास में तुलसी आराधना की विशेष महिमा है। आयुर्वेद में तुलसी को सभी रोगों को हरने वाली कहा गया है। भक्तिपूर्वक तुलसी पत्र या मञ्जरी से भगवान का पूजन करने से अनंत फल मिलता है कार्तिक मास में तुलसी आरोपण का विशेष महत्व है।
कार्तिक मास का तीसरा प्रमुख कृत्य भूमि शयन है। भूमि शयन से सात्विकता में वृद्धि होती है। भूमि अर्थात प्रभु के चरणों में सोने से जीव भी मुक्त होता है कार्तिक का चोथा मुख्य कार्य ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। पांचवा कार्य दिव्द्ल्व्र्जन को माना गया है उडद, मुंग, मसूर, चना, मटर, राइ में इनका सेवन निषेध है और कार्तिक व्रती को चना, मटर, दालों, तिल का तेल, पकवान, भाव तथा शब्द से दूषित पदार्थों का त्याग करना चहिये।
यदि कार्तिक मास को आज के संदर्भ में देंखें तो जानेगें की पीपल की पूजा तुलसी वन पालन एवं पूजन आंवला वृक्ष का पूजन, गोपूजा, गंगा स्नान, गोवर्धन पूजा आदि से पर्यावरण की शुद्धि होती है और मानव पृकृति प्रिय बनता है इस व्रत से इहलोक और परलोक दोनों में यश, बुद्धि, बल, धन तथा सत्संग की प्राप्ति होती है जो व्यक्ति इस मास में श्रद्धा भक्ति एवं विशवास से उत्सव की भांति मनाता है वह सब भांति से परिपूर्ण हो जाता है।
कार्तिक मास 18 अक्टूबर (शुक्रवार)से 15 नवंबर (शुक्रवार)
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य परमपूज्य गुरुदेव पं.ह्रदय रंजन शर्मा अध्यक्ष श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले पुरानी कोतवाली सर्राफा बाजार अलीगढ़ यूपी व्हाट्सएप नंबर-9756402981,7500048250