Ahoi Ashtami 2022 celebrate on 17th October #agra
आगरालीक्स… अहोई अष्टमी तारों की छांव, चन्द्रमा और दिन की सूरज वाली तीनों कल सोमवार को हैं। तीनों विधियों से होने वाली पूजा का शुभ समय व पूजन विधि।
जिस वार की दीपावली उसी दिन की अहोई अष्टमी
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान एवं गुरु रत्न भण्डार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित ह्रदय रंजन शर्मा के मुताबिक करवा चौथ के ठीक 4 दिन बाद कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। इसे अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है जिस वार की दीपावली होती है अहोई आठें भी उसी वार की पड़ती हैं।

अहोई अष्टमी पूजा विधि
जिन स्त्रियों को व्रत करना होता है वह दिनभर उपवास रखती हैं। सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं। उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है। संध्या के समय सूर्यास्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तो अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है
पूजन से पहले जमीन को स्वच्छ करके, पूजा का चौक पूरकर, एक लोटे में जलकर उसे कलश की भांति चौकी के एक कोने पर रखें और भक्ति भाव से पूजा करें। बाल-बच्चों के कल्याण की कामना करें। साथ ही अहोई अष्टमी के व्रत कथा का श्रद्धा भाव से सुनें। इसमें एक खास बात यह भी है कि पूजा के लिए माताएं चांदी की एक अहोई भी बनाती हैं जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ भी कहते हैं और उसमें चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजन किया जाता है। जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है उसी प्रकार चांदी की अहोई डलवानी चाहिए और डोरे में चांदी के दाने पिरोने चाहिए। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें। जल से भरे लोटे पर सातिया बना लें, एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।
इतना ही नहीं इस व्रत पर धारण की गई माला को दिवाली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसको गुड़ से भोग लगा और जल से छीटें देकर मस्तक झुकाकर रख दें। सास को रोली तिलक लगाकर चरणस्पर्श करते हुए आशीर्वाद लें।
पूजा का शुभ समय-
सूर्य की पूजा करने वाले लोगों के लिए दिवा काल 11:56 से लेकर दोपहर 2:30 बजे तक पूजा मान्य रहेगी
तारों की छांव वालों के लिए व चंद्रमा की पूजा करने वालों के लिए यह पूजा शाम को 5:00 से 6:45 के बीच में करना अत्यंत शुभ होगा
इस दिन चंद्रमा रात को 11:28 बजे के करीब निकलेगा अतः चंद्रमा की पूजा करने वाले लोगों के लिए इस समय पर ही चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जा सकता है