आगरा में बच्चों के लगवाग्रस्त हाथ का हो सकेगा इलाज
आगरालीक्स… आगरा डॉक्टरों ने समझाया कि डिलीवरी के दौरान शिशु गर्भ से बाहर आता है तो उसके कंधे में चोट लग सकती है, यह घातक होता है। ब्रेकियल प्लेक्सस पाल्सी मेरूदंड से कंधे, बांह और हाथ तक स्नायु के एक संजाल में अत्यधिक खिंचाव, फटने या अन्य तरह की क्षति है। इसके लक्षणों में शिथिलता या लकवाग्रस्त बांह, हाथ या कलाई में मांसपेशियों का नियंत्रण खत्म होना या बांह या हाथ में संवेदनशीलता खत्म होना है। इस तरह की क्षति अक्सर वाहन दुर्घटना या खेल में चोट लगने के बाद होती है। लेकिन अनेक ब्रेकियल प्लेक्सस क्षति प्रसव के समय शिशु को तब होती है जब प्रसव के दौरान शिशु का कंधा टकराता है और ब्रेकियल प्लेक्सस, स्नायु खिंच या टूट जाती है। यह जानकारी मुंबई से आए विशेषज्ञ चिकित्सकों ने आगरा में एक कार्यशाला के अंतर्गत दी।
पीडिएट्रिक बर्थ ब्रेकियल प्लेक्सस पाॅल्सी एक ऐसा चिकित्सा क्षेत्र है, जो आगरा के लिए अब तक अनछुटा है। प्रदेश में भी इसके विशेषज्ञों की कमी है। ऐसे में मुंबई के पीडिएट्रिक-आॅर्थोपेडिक सर्जन डा. तुषार अग्रवाल और शोल्डर सर्जन डा. दीपित अग्रवाल आगरा में अपनी सेवाएं शुरू कर रहे हैं। वे यहां सेंट जाॅन्स क्राॅसिंग के नजदीक साहू हाॅस्पिटल और रेनबो हाॅस्पिटल में हर माह के प्रथम रविवार को अपनी विशेषज्ञता पर आधारित उपचार आरंभ करेंगे। इससे आगरा में पहली बार ऐसे बच्चों को इलाज मिल सकेगा, जिन्हें प्रसव के समय लगी चोट के कारण जिंदगी भर की सजा भुगतनी पड़ सकती है। संजय प्लेस स्थित होटल पीएल पैलेस में आयोजित एक कार्यशाला में डा. तुषार अग्रवाल ने बताया कि लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता। इससे बच्चे का हाथ जिंदगी भर उठ या हिल-डुल नहीं पाता। बच्चे के जन्म के बाद कुछ समय तक लोग इसे यह समझकर नजर अंदाज कर सकते हैं कि अपने आप ठीक हो जाएगा, लेकिन यह जानना जरूरी है कि यह समस्या गंभीर हो सकती है। कई बार ऐसे मामलों में दवाओं और आॅपरेशन की जरूरत पड़ती है। इससे हाथ 90 से 100 प्रतिशत तक काम करना शुरू कर देता है। डा. दीपित साहू ने बताया कि ब्रेकियल प्लेक्सस क्षतियों के इलाज में आॅक्यूपेशनल या फिजिकल थैरेपी और कुछ मामलों में आॅपरेशन शामिल है। ब्रेकियल प्लेक्सस क्षति का स्थल और प्रकार प्रोग्नोसिस या चिकित्सकीय पूर्वानुमान को निर्धारित करता है। फटने की क्षति में तब तक बहाली की कोई उम्मीद नहीं होती है जब तक आॅपरेशन से उन्हें जोड़ नहीं दिया जाए। न्यूरोमा क्षत होने और न्यूरोप्रेक्सिया खिंचाव की क्षति में ठीक होने की उम्मीद ज्यादा होती है। मुख्य अतिथि वरिष्ठ जोड़ प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डा. अनूप खरे ने बताया कि अनजाने में ही सही कई बार बच्चे के जन्म के बाद परिवारीजनों से नजर अंदाजी हो जाती है। वह इस समस्या पर गौर नहीं करते। वहीं कई बार यह सोचते हैं कि शायद यह अपने आप ठीक हो जाएगा। ऐसा भी नहीं है कि हर बार यह समस्या पैरालाइसिस ही हो। ऐसे में यह एक विशाल चिकित्सा क्षेत्र है जो 10 प्रतिशत बच्चों को जिंदगी भर की सजा से बचा सकता है। इस अवसर पर डा. संजय धवन, डा. अरूण गुप्ता आदि मौजूद थे।