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India slid under Nepal by 10 feet during earthquake
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लेमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेट्री के एसोसिएट रिसर्च प्रोफेसर कोलिन स्टार्क के दावे के मुताबिक शनिवार को आए भीषण भूकंप से काठमांडू और पोखरा शहरों के बीच एक हजार से दो हजार वर्ग मील क्षेत्र के एक जोन में हुई हलचल से एक दिशा में भू-भाग खिसक गया है। वहीं एकदम उलट दिशा में पूरा हिमालयी पर्वत शृंखला अपनी पूरी चौड़ाई में खिसकी है। लिहाजा भारत का एक हिस्सा भूकंप आने के कुछ ही सेकेंड में दस फीट उत्तर की दिशा में खिसकता चला गया। यह दस भू-भाग फीट नेपाल की चïट्टानों के नीचे चला गया है।
स्टार्क के मुताबिक नेपाल की सीमा से लगे बिहार में पृथ्वी की सतह की ऊपरी चïट्टान (जोकि चूना पत्थर की चïट्टानें हैं) चंद सेकेंड में उत्तर दिशा की ओर खिसक कर नेपाल के नीचे समा गई। भारतीय प्लेट में हुए इस घर्षण से नेपाल के भरतपुर से लेकर हितौदा होते हुए जनकपुर जोन पर इसका असर हुआ है। इसी इलाके से लगी भारतीय जमीन (पूर्वी-पश्चिमी चंपारण) नेपाल की सतह के नीचे चली गई है। यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि पूरा भारतीय उपमहाद्वीप बहुत ही मंद गति से नेपाल और तिब्बत की फाल्ट (दरार) के नीचे जा रहा है। भारतीय उप महाद्वीप के नेपाल और तिब्बत की सतह के नीचे जाने की रफ्तार प्रति वर्ष 1.8 इंच होती है।
81 सालों में भारत की 12 फीट जमीन दब चुकी है :
हमेशा से ही समूचा उत्तर भारत उत्तर दिशा में नेपाल के नीचे की ओर खिसक रहा है। इसका खिसकना अचानक और विभिन्न इलाकों में और अलग-अलग वक्त में होता रहा है। दस हजार लोगों की जान लेने वाले वर्ष 1934 में बिहार में आए भीषण भूकंप से अब तक पिछले 81 सालों में भारत की बारह फीट जमीन नेपाल की सतह के नीचे दब चुकी है।
काठमांडू तीन मीटर दक्षिण में खिसका :
सिडनी स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के भूकंप विशेषज्ञ जेम्स जैक्सन का कहना है कि नेपाल के भीषणतम भूकंप से काठमांडू के नीचे की जमीन 15 किलोमीटर की गहराई में दक्षिण दिशा में तीन मीटर खिसक गई है। भूकंप के बाद पूरी पृथ्वी की परिक्रमा ध्वनि तरंगों की मदद से करके राजधानी काठमांडू की स्थिति का पता लगाया गया। काठमांडू की स्थिति का यह विश्लेषण एडिलेड यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के नतीजों से भी मेल खाता है।
माउंट एवरेस्ट जस का तस :
काठमांडू के अपनी जगह से खिसकने और इस घर्षण से हिमालय पर बर्फीला तूफान आने के बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट अपनी जगह पर कायम है। अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि उसके कद में कुछ मिलीमीटर का मामूली इजाफा भी हुआ है या नहीं। हालांकि भूकंप का कारण बनी मुख्य दरार (हिमालयन थस्र्ट फाल्ट) पश्चिमी एवरेस्ट की दिशा में पड़ती है।
हिमालयन थ्रस्ट फाल्ट पर आया भूकंप :
इस बार भूकंप उत्तर की दिशा में बढ़ रहे भारतीय उप महाद्वीप प्लेट को यूरेशियाई प्लेट से अलग करने वाली हिमालयन थ्रस्ट फाल्ट पर आया है। दोनों प्लेटों का यह जोड़ (हिमालयन थस्र्ट फाल्ट) दस डिग्री कोण पर उत्तर और पूर्वोत्तर की दिशा में झुक गया। ब्रिटेन की दरहम यूनिवर्सिटी के मार्क एलन का कहना है कि इस फाल्ट जोन पर हुए घर्षण से सतह पर यह सारे बदलाव हुए हैं।
एटमी धमाके से कई गुना ज्यादा ऊर्जा निकली :
भूकंप से इंडियन प्लेट के यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसकने से हुए घर्षण के कारण पृृथ्वी का 7200 वर्ग किलोमीटर भूभाग अपनी जगह से तीन मीटर ऊपर उठ गया। इसके परिणामस्वरूप खिंचाव से एक झटके में 79 लाख टन टीएनटी ऊर्जा निकली। उसका असर पृृथ्वी की धुरी पर भी असर पड़ा। इस ऊर्जा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह हिरोशिमा में हुए एटमी धमाके से निकली ऊर्जा से 504.4 गुना ज्यादा थी।