आगरालीक्स …जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए आगरा के सपूत धर्मेंद्र को अंतिम विदाई देने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा। बड़ी संख्या में लोग अंत्येष्टि में पहुंचे। अंत्येष्टि स्थल पर गूंज रहा था जब तक सूरज चांद रहेगा, धर्मेंद्र तेरा नाम रहेगा। वहीं, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगे। लोगों ने सरकार से मांग की कि वह धर्मेंद्र की शहादत का बदला पाकिस्तान से ले। उसे ऐसा सबक सिखाए कि वह आतंकवाद की नीति ही छोड़ दे।
शहीद धर्मेंद्र सिंह (37) का पार्थिव शरीर बुधवार सुबह आठ बजे लोहकरेरा रुनकता में घर पहुंचने की जानकारी होते ही इलाके के लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े।बूढ़ी मां सिया देवी, पत्नी ममता, दो बेटियां कृष्णा और खुशी का रो-रोकर बुरा हाल था। अंतिम संस्कार के लिए तिरंगे में लिपटा शहीद का शव लेकर सेना के जवान खेतों की ओर चले। उनके साथ सैकड़ों युवा राष्ट्रध्वज लेकर चल दिए।
एक घंटे रुकी रही अंत्येष्टि
लोहकरेरा गांव पहुंचे कुछ नेताओं ने प्रशासन से शहीद के परिवारीजनों के लिए मुआवजे की राशि घोषित कराने की मांग की। वहां मौजूद उपजिलाधिकारी अजीत कुमार सिंह ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। इससे लोग नाराज हो गए। उन्होंने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को रोक दिया। लगभग एक घंटे बाद मौके पर पहुंचे सीडीओ नागेंद्र प्रताप सिंह ने शासन स्तर से 20 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दिलाने का आश्वासन दिया। तब 11 बजे शहीद के गोद लिए बेटे जीतेंद्र उर्फ जीतू ने चिता को मुखाग्नि दी।
16 महीने बाद हो जाते रिटायर
धर्मेंद्र सिंह 152 एडी रेजीमेंट में हवलदार के पद पर श्रीनगर में तैनात थे। धर्मेंद्र सिंह 1996 में सेना में भर्ती हुए थे। उनके सेवानिवृत्ति होने में 16 माह ही बचे थे। वह अपने चाचा छत्रपाल की त्रयोदशी संस्कार में शामिल होकर छह नवंबर को ही गांव से श्रीनगर गए थे। चचेरी बहन संजू की 12 दिसंबर की शादी में शामिल होने के लिए उन्हें तीन दिसंबर को गांव आना था।उनके पार्थिव शरीर के साथ श्रीनगर से आए सूबेदार दुष्यंत सिंह, नायब सूबेदार राजपाल सिंह, हवलदार ऋषिपाल, हवलदार प्रवीन कुमार, हवलदार विजय सिंह ने बताया कि धर्मेंद्र सिंह बहुत बहादुर सिपाही थे। वह आतंकवादियों से लोहा लेते समय वीरगति को प्राप्त हुए।
इंटरनेट फोटो
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