आगरालीक्स… वरदविनायक (अंगारकी) तिलचतुर्थी 15 फरवरी की है। गणेशजी विघ्नहर्ता हैं। इनकी पूजा और व्रत से संकट हल होते हैं। आगरालीक्स में जानिए तिलचतुर्थी का महात्म्य विधि, पूजा विधान।
गुरु ज्योतिष शोध संस्थान के अध्यक्ष पं. हृदय रंजन शर्मा के अनुसार प्रत्येक चंद्र माह में दो चतुर्थियां पड़ती हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार चतुर्थी भगवान गणेश की तिथि है। शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या अथवा इसके बाद की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा या इसके बाद पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष विनायक अंगारकी चतुर्थी सोमवार को पड़ रही है।
भगवान श्रीगणेश जी को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीगणेश का अवतरण हुआ था। इसी कारण चतुर्थी भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय रही है। इस वर्ष अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को भगवान गणेश जी की पूजा का विशेष नियम बताया है।
गणेश तिल चतुर्थी व्रत विधि
-सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान गणेश की पूजा धूप दीप आदि से करनी चाहिए। विधिविधान के साथ फल-फूल अक्षत रौली, मौली पंचामृत से स्नान कराने के बाद भगवान को तिल से बनी वस्तुओं तथा गुड़ से बने लड्डूओं का भोग लगाना चाहिए।
-इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को लाल वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा करते समय पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। साथ ही ऊं गणेशाय नमः का 1008 बार जाप करना चाहिए। मंत्र का जाप करते हुए पूजन करना चाहिए। सांध्य समय कथा सुनने के पश्चचात गणेशजी की आरती करनी चाहिए। इससे मानसिक शांति के साथ घर परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
गणेश तिल चतुर्थी व्रत दान
इस दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का तिल चतुर्थी व्रत रखते हैं और जो व्रत नहीं रखते हैं, वह भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को कंबल, कपड़े दान कर सकते हैं। गणेश जी के प्रसाद को बांटना चाहिए।