Vasant Panchami tomorrow in many auspicious constellations: Echo of sound in the creation made from the veena of Mother Saraswati
आगरालीक्स…वसंत पंचमी कल कई शुभ नक्षत्र में है। ज्ञान, साहित्य, संगीत, कला की देवी मां सरस्वती की होती है पूजा-अर्चना। जानें सर्वप्रथम किसने की पूजा..
वसंत पंचमी पर बन रहे हैं यह योग
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ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान एवं गुरु रत्न भंडार के ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा बताते है कि माघ शुक्ल पक्ष दिन बुधवार रेवती नक्षत्र सुबह 10:42तक उसके बाद अश्विनी नक्षत्र शुभ योग बालब करण के शुभ संयोग में मंगलवार 13 फरवरी 2024 की दोपहर 02:41 से बुधवार 14 फरवरी 2024 दोपहर 12:09बजे तक पंचमी तिथि मान्य रहेगी, ( उदया तिथि के हिसाब से भी 14फरवरी को ही बसंत पंचमी श्री सरस्वती जयंती मान्य रहेगी , यह विवाह का एक अनबूझा(स्वयंसिद्ध) मुहूर्त भी है.
वसंत पंचमी क्यों और कैसे मनाई जाती है
माता सरस्वती को समस्त ज्ञान, साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है. शिक्षण संस्थाओं में वसंत पंचमी बड़े की धूमधाम से मनाई जाती है. यह शिक्षा ही तो मनुष्य को पशुओं से अलग बनाती है।
सृष्टि को गति देने को हुई रचना
मान्यता है कि मनुष्य की रचना के बाद ब्रह्मा जी ने अनुभव किया कि केवल इससे ही सृष्टि की गति नहीं दी जा सकती है विष्णु से अनुमति लेकर उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की, जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी. शब्द के माधुर्य और रस से युक्त होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा।
सरस्वती की वीणा से हुई सृष्टि में नाद की अनुगूंज सरस्वती ने जब अपनी वीणा को झंकृत किया, तो समस्त सृष्टि में नाद की पहली अनुगूंज हुई. चूंकि सरस्वती का अवतरण माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है
श्रीकृष्ण ने की सरस्वती की प्रथम पूजा
इस दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के पीछे भी पौराणिक कथा है. इनकी सबसे पहले पूजा श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने ही की है।
मां सरस्वती के विभिन्न स्वरूप
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को चार भुजायुक्त और आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है. स्कंद पुराण में सरस्वती जटा-जूटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली व तीन नेत्रों वाली कही गई हैं. रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौम्य वर्णन मिलता है. ‘दुर्गा सप्तशती’ में भी सरस्वती के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है. शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन ही शिव जी ने मां पार्वती को धन और सम्पन्नता की अधिष्ठात्री देवी होने का वरदान दिया था. उनके इस वरदान से मां पार्वती का स्वरूप नीले रंग का हो गया और वे ‘नील सरस्वती’ कहलायीं. शास्त्रों में वर्णित है कि वसंत पंचमी के दिन नील सरस्वती का पूजन करने से धन और सम्पन्नता से सम्बंधित समस्याओं का समाधान होता है. वसंत पंचमी की संध्याकाल में सरस्वती पूजा करने से और गौ सेवा करने से धन वृद्धि होती है
अक्षराभ्यास का दिन है वसंत पंचमी
वसंत पंचमी के दिन बच्चों को अक्षराभ्यास कराया जाता है. अक्षराभ्यास से तात्पर्य यह है कि विद्या अध्ययन प्रारम्भ करने से पहले बच्चों के हाथ से अक्षर लिखना प्रारम्भ कराना. इसके लिए माता-पिता अपने बच्चे को गोद में लेकर बैठें. बच्चे के हाथ से गणेश जी को पुष्प समर्पित कराएं और स्वस्तिवाचन इत्यादि का पाठ करके बच्चे को अक्षराभ्यास करवाएं। मान्यता है कि इस प्रक्रिया को करने से बच्चे की बुद्धि तीव्र होगी
वसंत पंचमी एक नजर में
यह दिन वसंत ऋतु के आरंभ का दिन होता है. इस दिन देवी सरस्वती और ग्रंथों का पूजन किया जाताहै.नवबालक-बालिका इस दिन से विद्या का आरंभ करते हैं. संगीतकार अपने वाद्ययंत्रों का पूजन करते हैं. स्कूलों और गुरुकुलों में सरस्वती और वेद पूजन किया जाता है. हिन्दू मान्यता के अनुसार, वसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है. इस दिन बिना मुहूर्त जाने शुभ और मांगलिक कार्य किए जाते हैं