आगरालीक्स(30th September 2021 Agra News)…. अगर आपकी जन्म कुंडली में पितृ दोष है तो करिए आसान और घरेलू उपाय. नहीं तो होंगी ये परेशानियां.
पितृ दोष क्या है
पितृ से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्वजों से है। जो पितृ योनि को प्राप्त हो चुके हैं, ऐसे सभी पूर्वज जो आज हमारे मध्य नहीं हैं, परन्तु मोहवश या असमय मृत्यु को प्राप्त होने के कारण आज भी मृत्यु लोक में भटक रहे हैं। अर्थात जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है, उन सभी की शान्ति के लिये पितृ दोष निवारण उपाय किये जाते हैं। ये पूर्वज स्वयं पीड़ित होने के कारण तथा पितृयोनि से मुक्त होना चाहते हैं परन्तु जब आने वाली पीढ़ी की ओर से उन्हें भूला दिया जाता है तो पितृ दोष उत्पन्न होता है।
पितृ दोष कैसे बनता है
अलीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि कुंडली के नवम भाव पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते हैं, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं। व्यक्ति की कुंडली में एक ऐसा दोष है, जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है। इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।
पितृ दोष के कारण
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पितृ दोष उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते है। परिवार में अकाल मृत्यु हुई हो, परिवार में इस प्रकार की घटनाएं जब एक से अधिक बार हुई हों या फिर पितरों का विधि विधान से श्राद्ध न किया जाता हो, या धर्म कार्यों में पितरों को याद न किया जाता हो, परिवार में धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न न होती हों, धर्म के विपरीत परिवार में आचरण हो रहा हो, परिवार के किसी सदस्य के द्वारा गौ हत्या हो जाने पर या फिर भ्रूण हत्या होने पर भी पितृ दोष व्यक्ति की कुण्डली में नवम भाव में सूर्य और राहू स्थिति के साथ प्रकट होता है।
देर से उदय होता है भाग्य
नवम भाव पिता का भाव है तथा सूर्य पिता का कारक होने के साथ साथ उन्नती, आयु, तरक्की, धर्म का भी कारक होता है। इस पर जब राहु जैसा पापी ग्रह अपनी अशुभ छाया डालता है तो ग्रहण योग के साथ साथ पितृ दोष बनता है। इस योग के विषय में कहा जाता है कि इस योग के व्यक्ति के भाग्य का उदय देर से होता है. अपनी योग्यता के अनुकुल पद की प्राप्ति के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
पितरों को करें तृप्त
हिन्दू शास्त्रों में देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए। देव कार्यों से अधिक पितृ कार्यों को महत्व दिया गया है। इसीलिये देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृप्त करना चाहिए। पितृ कार्यों के लिए सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात अश्विन मास का कृष्ण पक्ष समझा जाता है।
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पितृ दोष शान्ति के उपाय
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पूर्वजों को मृत्यु तिथि अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन, पिंडदान, तर्पण आदि करने के बाद ब्राह्माणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने से पितृ दोष शान्त होता है। इस पक्ष में एक विशेष बात जो ध्यान देने योग्य है, वह यह है कि जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की मृत्यु की तिथि न मालूम हो, तो ऐसे में अश्विन मास की अमावस्या को उपरोक्त कार्य पूर्ण विधि- विधान से करने से पितृ शान्ति होती है। इस तिथि को सभी ज्ञात- अज्ञात, तिथि- आधारित पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।
पितृ दोष निवारण के अन्य उपाय
पीपल के वृक्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है। इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है। प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है।
प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।
सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है। इसके अलावा सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।