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FOGSi awareness programme at Malhotra Hospital, Agra
आगरालीक्स.. आगरा में डॉक्टरों ने कहा कि अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदना सीख लिया था, इसी तरह से मां के गर्भ में शिशु खान-पान, आवाज, भावनाओं की शिक्षा हासिल कर सकता है। फेडरेशन आॅफ आॅब्सटेट्रिक एंड गायनेकोलाॅजिकल सोसाइटी आॅफ इंडिया (फाॅग्सी) की अध्यक्ष डा. जयदीप मल्होत्रा ने कहा कि संतान को इस दुनिया में लाने से महीनों पहले ही हम अक्सर यह सोचना शुरू कर देते हैं कि हमारे घर में कोई भक्त, दानी, वीर या विद्वान पैदा हो। मगर सोचने की बात है कि कैसे? बचपन से ही अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की कहानी हम सभी ने सुनी है कि कैसे उन्होंने अपनी मां के गर्भ में ही अपने चक्रव्यूह भेदने के गुर सीख लिए थे। कोई इस पर यकीन करता है तो कोई महज गल्पकथा मानता है, लेकिन क्या ऐसा सच में है। हमने पौराणिक कथाओं में हमेशा यह माना है और अब विज्ञान भी मानता है। दुनिया भर में वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं कि क्या एक बच्चा अपनी मां के गर्भ के माहौल से प्रभावित होता है, क्या वह गर्भ में ही खान-पान, आवाज, भावनाओं की शिक्षा हासिल कर सकता है। आपको हैरत होगी यह जानकार कि जवाब हां में ही मिलता है। यह सच है कि एक संस्कारी संतान सुखद माहौल की निशानी है। यह कहना है का।
फाॅग्सी की ओर से देश भर में अदभुत मातृत्व (भावी पीढी में स्वास्थ्य और संस्कारों का सृजन) करने की पहल की गई है। इसके तहत जागरूकता कार्यक्रम किए जा रहे हैं। रेनबो हाॅस्पिटल के बाद आज दूसरा आयोजन एमजी रोड स्थित मल्होत्रा नर्सिंग होम एंड मैटरनिटी सेंटर में हुआ। इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डा. जयदीप मल्होत्रा ने मरीजों, तीमारदारों और आमंत्रित आम शहरवासियों को बताया गया कि कैसे हम खुद के अच्छे विचारों और आचार-व्यवहार, पारिवारिक वातावरण के जरिए गर्भकाल में ही संतान के अंदर अच्छे स्वास्थ्य और संस्कारों का सृजन कर सकते हैं। इतना ही नहीं इससे हम अपने देश के भविष्य को भी सुनहरा कर सकते हैं। डा. जयदीप ने कहा कि हमारी जिम्मेदारी एक संतान को इस दुनिया में लाना ही नहीं है बल्कि उसका स्वास्थ्य अच्छा हो, संस्कार अच्छे हों यह भी हम पर ही निर्भर करता है। संतान की प्रथम शिक्षिका मां है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि आदर्श माताएं अपनी संतान को श्रेष्ठ एवं आदर्श बनाती हैं। मां के जीवन और उसकी शिक्षा का बालक पर सर्वाधिक प्रभाव पडता है और यह संतान के गर्भ में आने के समय ही शुरू हो जाता है। हम गर्भ से ही संतान में सुसंस्कारों की नींव डाल सकते हैं। सिर्फ माता ही नहीं बल्कि पूरा परिवार इसमें सहयोग करता है। घर के माहौल को अच्छा बनाकर। अगर कोई पुरूष ऐसा है जो स्त्री पर हाथ उठाता है, शराब पीकर गाली-गलौज करता है, सिगरेट-बीडी से अपने घर के वातावरण को नष्ट करता है तो यकीनन संतान पर इसका सीधा प्रभाव पडता है। इसी तरह मां के विचार अच्छे न हों तो संतान में भी अच्छे विचार नहीं आते। संतान में हम यदि बुराई के कांटे भरेंगे तो वो न सिर्फ समाज को बल्कि खुद माता-पिता को भी चुभेंगे। इसलिए मां और पूरे परिवार का कर्तव्य है कि संतान का शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक संरक्षण व पोषण करें। उन्होंने कहा कि भारत में हर साल दो करोड बच्चे जन्म लेते हैं और दुखद यह है कि जन्म देने के समय 45000 माताओं की मृत्यु हो जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आज भी देश में अस्पतालों में होने वाले प्रसवों का औसत 80 प्रतिशत ही है।
सरकार के साथ मिलकर फाॅग्सी इस प्रतिशत को 99 प्रतिशत तक ले जाने की कोशिश कर रही है ताकि इस मातृ मृत्यु दर पहले 5000 फिर शून्य पर लाया जा सके। वहीं हर एक लाख जन्म लेने वाले बच्चों में से 34 की मृत्यु हो जाती है, इसे भी कम करना है। इस दौरान गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारीजनों ने डा. जयदीप से प्रश्न पूछे और उत्तर पाकर अपनी जिज्ञासाएं शांत कीं। फाॅग्सी की संयुक्त सचिव डा. निहारिका मल्होत्रा बोरा ने कहा कि अदभुत मातृत्व यह समझाता है कि मुनष्य की जिंदगी मां के गर्भ में आने के साथ ही शुरू हो जाती है। रेनबो हाॅस्पिटल के निदेशक और फाॅग्सी के पूर्व अध्यक्ष डा. नरेंद्र मल्होत्रा ने कहा कि वैज्ञानिक भी ऐसा मानते हैं कि बच्चा गर्भ में ही बाहर के माहौल से प्रभावित होता है। योग गुरू विनयकांत नागर ने गर्भधारण के समय योग के महत्व पर प्रकाश डाला और गर्भवती महिलाओं के लिए कुछ योग क्रियाएं बताईं जिन्हें नियमित करने से उन्हें और गर्भस्थ शिशु को लाभ मिलता है। इस अवसर पर डा. मनप्रीत शर्मा, डा. शैमी बंसल, डा. सरिता, डा. नीलम माहेश्वरी, सोनल भार्गव आदि मौजूद थे।