
विशेषज्ञों ने तैयार किया डॉक्यूमेंट
सरकार के एक्सपर्ट पैनल द्वारा तैयार 14 पेज के एक डॉक्युमेंट में कहा गया है कि डॉक्टर इस टेस्ट पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए बाध्य नहीं हैं। डॉक्युमेंट के अनुसार इस टेस्ट को पूरी तरह बैन करना पीड़िता की हेल्थ के साथ खिलवाड़ करना और उसके साथ अन्याय करना होगा।
सामाजिक कार्यकर्ता इस टेस्ट का लंबे समय से विरोध करते रहे हैं। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था, ‘टू फिंगर टेस्ट पीड़िता को उतनी ही पीड़ा पहुंचाता है जितना उसके साथ हुआ रेप। कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा था की इससे पीड़िता का अपमान होता है और यह उसके अधिकारों का हनन भी है। इस तरह का टेस्ट मानसिक पीड़ा देता है, सरकार को इस तरह के टेस्ट को ख़त्म कर कोई दूसरा तरीका अपनाना चाहिए।’ चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट राजमंगल प्रसाद ने इस पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है। एम्स के फोरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर सुधीर गुप्ता का कहना है कि डॉक्टर्स यह टेस्ट रेप विक्टिम के सेक्सुअल एक्सपीरियेंस और पेनीट्रेशन को जांचने के लिए करते हैं लेकिन यह अच्छा तरीका नहीं है।
दिल्ली स्वास्थ्य विभाग के अफसर का कहना है कि यह एडवायजरी दिल्ली सरकार का रुख स्पष्ट करने के लिए है जिसकी जानकारी हमसे आरटीआई के जरिए मांगी गई थी। अफसर के मुताबिक एडवायजरी में विक्टिम की सहमति जरूरी है और विक्टिम को कांउसलिंग के जरिए ये समझाया जाएगा कि इस टेस्ट को करने की जरूरत क्यों है। कई एनजीओ आरोप लगाते रहे हैं कि सरकारी अस्पतालों में इस टेस्ट को लगातार किया जाता रहा है।
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